हम अपने गुरुरों से निकल क्यों नहीं पातें,
हर शख्स शख्सियत है ये समज क्यों नहीं पाते !
हरी भरी बगीया में महकती,लहराती कलियाँ,
कुछ नादान इन्हे खिलते, मुस्कुराते देख क्यों नहीं पाते!!
जब किसी माँ का आँचल उजड़ता है,
दिल भगवान् का भी जलता है,
अल्लाह भी मुँह फेर लेते हैं उन बन्दों से,
"जियो और जीने दो" पे अमल कर क्यों नही पातें!!
जीवन-मृत्यु है ईश्वर का दायित्व,
हम अपने दायरे में रह क्यों नही पातें!
हम अपने गुरुरों से निकल क्यों नहीं पातें,
हर शख्स शख्सियत है ये समज क्यों नहीं पाते !!
Thursday, September 13, 2007
Thinking....
Posted by Cindrella at 10:10 PM
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6 comments:
hey...beautifully worded...loved it...
only if ppl could think once before they do certain things...
Tx....mystery.
Hope the world turns into the most peaceful place.
Gr88 dear..u write really good
you write so well!!
really good one to read !!!
wow...... really beautiful.... Rohit Tripathi
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